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रामराज्य की कथा

यशपाल

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1994
पृष्ठ :103
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3214
आईएसबीएन :000000

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भारत में ब्रिटेन की शासन व्यवस्था एक बोतल के रुप में थी जिसमें शोषण के अधिकार सुरक्षित थे।

Ramrajy ki katha

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भारत में ब्रिटेन की शासन व्यवस्था एक बोतल के रुप में थी जिसमें शोषण के अधिकार सुरक्षित थे। क्रान्तिहीन वैधानिक परिवर्तन से शासन व्यवस्था की बोतल भारतीय पूँजीपति श्रेणी के हाथ में आ जाने का नाम ही रामराज्य है। रामराज्य का विधान और नीति ऐसी है कि भविष्य में भी शोषक श्रेणी की शालन व्यवस्था की बोतल की डाट खोलने का अवसर जनता न पा सके....।
उपरोक्त उपमा को इस पुस्तक में ऐतिहासिक-क्रम में चरितार्थ होते दिखाया गया है। पुस्तक की सरल और सबल शैली के लिये यशपाल जमानत है।

भूमिका

इस देश की जनता ने ब्रिटिश साम्राज्यशाही के शोषण और दासता से मुक्ति के लिये बहुत लम्बे समय तक संघर्ष किया है। भारत की जनता के इस संघर्ष का नेतृत्व भारतीय मुख्यतः राष्ट्रीय कांग्रेस के हाथ में था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व प्रकट तौर पर गाँधीजी के हाथ में था इसलिये कांग्रेस की नीति गाँधीवाद के सत्य-अहिंसा के सिद्धान्तों के अनुकूल रही है। आज भारत में कांग्रेजी राज कायम है। भारतीय जनता के संघर्ष का उद्देश्य कांग्रेजी राज बना देने के लिये गांधीजी ने उसे रामराज्य का नाम दे दिया था। कांग्रेस के राज्य को रामराज्य का नाम देने का प्रयोजन था-भगवान राम को सत्य न्याय और अहिंसा की मर्यादा मानने वाली भारत की श्रद्धालु प्रजा को अपने नेतृत्व में समेट सकना और उनका अन्धविश्वास प्राप्त कर सकना। आज भारत की जनता इस रामराज्य के फल और परिणाम को अपनी भूख, कंगाली और राजनैतिक दमन के रूप में देख रही है। देश की जनता अनुभव कर रही है कि वह ठगी गयी है। कांग्रेसी राज अपनी शासन नीति को गाँधीवाद की नीति बताकर इसे गाँधीजी की जय के बल से जनता के मन और मस्तिष्क पर बाँध देने का यत्न कर रहा है।

कांग्रेस के अलावा अनेक दूसरे राजनैतिक दलों ने भी भारत की राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिये प्रयत्न किये हैं। इन दलों के प्रयत्न कांग्रेस के आन्दोलनों की तरह वैधानिक मांगों के लिये ही नहीं बल्कि ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सभी सम्भव उपायों से विद्रोह के रूप में थे। उनके अस्तित्व को सहन करना ब्रिटिश साम्राज्यशाही के लिये सम्भव नहीं था। ब्रिटिश साम्राज्यशाही कांग्रेस को अपना प्रतिद्वन्द्वी मानकर भी इसे भारतीय जनता के प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार करती रही। इसका एक कारण तो यह था कि देश की जनता का बहुत बड़ा भाग कांग्रेस के पीछे था। ब्रिटिश सरकार द्वारा कांग्रेस को मान्यता देने का दूसरा कारण कांग्रेस की अपने संघर्ष को वैधानिक उपायों द्वारा, अंग्रेजों द्वारा बनाये विधान की रक्षा करते हुए चलाने की प्रतिज्ञा थी। गाँधीजी ने अपनी नीति को अहिंसात्मक नीति का नाम देकर, उस पर आध्यात्मिकता का रंग चढ़ाकर उसे सांसारिकता और राजनीति से ऊपर उठाने और मनुष्यमात्र की चेष्टा की थी। उनकी इस अहिंसा का तथ्य ब्रिटिश शासन की मिली-जुली सामन्तवादी और पूँजीवादी राजनैतिक और आर्थिक प्रणाली के मूल तत्त्व पर आंच न आने देना ही था। इसका स्पष्ट अर्थ था कि देश में ब्रिटिश साम्राज्यशाही द्वारा जारी किये गये विधान और व्यवस्था से कांग्रेस के ध्येय और विचारधारा का विरोध नहीं था।

जहाँ तक ब्रिटेन द्वारा इस देश में जारी की गई शोषण की पूँजीशाही व्यवस्था का प्रश्न था, गाँधीजी और कांग्रेस उस व्यवस्था के विद्रोहियों और जनता के विद्रोह से उस व्यवस्था की रक्षा करते रहे। कांग्रेस का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्यशाही द्वारा स्थापित किये गये विधान और व्यवस्था की रक्षा करते हुए शासन की शक्ति अपने हाथ में ले लेना था। इस परिवर्तन का एकमात्र अर्थ यही हो सकता था कि इस देश में कायम इस देश की जनता का शोषण और दमन करने वाली व्यवस्था या विधान जैसे के तैसे बने रहें। उस विधान और व्यवस्था का नियंत्रण और संचालन करने वाले व्यक्ति बदल जायँ। कांग्रेस और गाँधीजी अपने इसी उद्देश्य को रामराज्य का नाम देकर, इस देश की जनता को रामराज्य से सुख समृद्धि की आशा दिलाकर, इसके लिये अपना सर्वस्व बलिदान कर देने के लिये जनता को पुकार रहे थे।

15 अगस्त 1947 के दिन इस परिवर्तन की वैधानिक रूप से घोषणा कर दी गई। कांग्रेस के नेतृत्व और संरक्षण में देश में रामराज्य की स्थापना हो गई। इस रामराज्य की स्थापना से कांग्रेस का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्यशाही द्वारा इस देश में स्थापित पूँजीशाही विधान और व्यवस्था की रक्षा करते हुए शासन के विधान और व्यवस्था के नियंत्रण और संचालन का अधिकार इस देश की पूँजीपति श्रेणी के ऊपरी भाग के हाथ में दे देना-पूरा हो गया परन्तु जनता जिस उद्देश्य से मुक्ति के लिये संघर्ष कर रही थी, वह पूरा नहीं हुआ।

इस देश की जनता रामराज्य की स्थापना के पश्चात् से दिन प्रतिदिन अपनी गिरती जाती अवस्था, नित्य बढ़ती, जाती भूख कंगाली, बेरोजगारी, राजनैतिक दमन और नागरिक स्वतंत्रता के अपहरण से यह बात अनुभव कर रही है। कांग्रेस और गाँधीवाद ने रामराज्य के जिस आदर्श को अपने सामने रखकर, उसे सत्य, अहिंसा और वैधानिकता का नाम देकर जिस नीति को अपनाया था और जिस रूप में कांग्रेस उस पर चल रही है, उसका परिणाम इस देश की शासन की बागडोर पर पूँजीपति श्रेणी के हाथ मजबूत कर देने के सिवा और कुछ हो भी नहीं सकता था।

रामराज्य की स्थापना हो जाने के पश्चात् देश की जनता रामराज्य की समता, न्याय और अहिंसा का रूप अपने नित्य के जीवन में देख रही है। जनता को यह निराशा क्यों हुई ? इसके कारण और बीज कांग्रेस की नीति और कार्यक्रम में सदा से ही मौजूद थे। गाँधीजी और कांग्रेस की महान सफलता यह थी कि इस देश की जनता को शोषित और दास बनाये रखने वाली नीति और कार्यक्रम को जनता की मुक्ति के संघर्ष का नाम दे सके और इसके लिये जनता का सहयोग भी पा सके।
ब्रिटिश शासन और उसकी सामन्तशाही और पूँजीशाही शोषक व्यवस्था से मुक्ति के संघर्ष का स्वाभाविक मार्ग क्रान्ति द्वारा उस व्यवस्था को तोड़ देना ही था।

कांग्रेस ने जनता के संघर्ष को क्रान्ति का रूप न लेने देकर अहिंसा और सत्याग्रह के वैधानिक आन्दोलन का रूप दे दिया। इस सत्याग्रह और अहिंसा का प्रयोजन ब्रिटिश साम्राज्यशाही की शोषक व्यवस्था को शोषित जनता के विरोध और आक्रमण से बचाना था और जनता के विरोध को सदा वैधानिकता की शर्त से जकड़े रहना था। 1921 का आन्दोलन, चौरी चौरा कांड के कारण स्थगित करना, पेशावर विद्रोह के समय विद्रोही सैनिकों को हतोत्साह करना और जनता के व्यापक सत्याग्रह को व्यक्तिगत सत्याग्रह बना देना, जनता के प्रति विश्वासघात के बहुत स्पष्ट उदाहरण हैं। ऐसे प्रत्येक अवसर पर जब कि देश की जनता क्रान्ति के लिये तैयार हुई और ब्रिटिश साम्राज्यशाही व्यवस्था के पाँव डगमगाने लगे, गाँधीजी ने कांग्रेस से संगठन द्वारा अहिंसा के नाम पर उस शोषक व्यवस्था की रक्षा का ऐसा प्रयत्न किया जो स्वयं ब्रिटिश शासन के लिये भी सम्भव न था। जिस समय तक अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थिति के कारण इस देश में ब्रिटिश शासन बना रहना सम्भव रहा, कांग्रेस की गाँधीवादी अहिंसा (पूँजीवादी व्यवस्था की रक्षा की नीति) ही ब्रिटिश साम्राज्य की मुख्य रक्षक बनी रही।

गाँधीवादी अहिंसा में कांग्रेस को पूँजीवादी नेताशाही की कितनी आस्था थी, यह गाँधीजी की मृत्यु के दिन ही स्पष्ट हो गया। अहिंसा को मनुष्य मात्र के जीवन का परम लक्ष्य बताने वाले उस महापुरुष के शव को तोपगाड़ी पर सजाकर उसकी शवयात्रा करके, कांग्रेस की नेताशाही ने यह स्पष्ट कर दिया कि गाँधीवाद के उद्देश्यों (पूँजीपति श्रेणी के हितों की रक्षा) को पूरा करने और रामराज्य की व्यवस्था को लागू करने के लिये वे तोप की शंक्ति में ही विश्वास रखते हैं। कांग्रेस सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया कि सत्य, प्रेम, और अहिंसा के साधन उनके लिये उसी समय तक उपयोगी थे, जब तक वे अपनी श्रेणी (ब्रिटिश साम्राज्यशाही) से घरेलू लड़ाई लड़ रहे थे। अपनी श्रेणी के हित पर आँच आते देख वे दमन के उन भी उपायों का प्रयोग कर रहे हैं जिनका कि संसार की क्रूर तानाशाही सरकारें कर सकती हैं। कांग्रेस सरकार अपनी इस नीति को आज भी गाँधीवाद और रामराज्य का नाम दे रही है।

ब्रिटिश साम्राज्यशाही से शासन का अधिकार लेकर स्वराज्य और रामराज्य स्थापित करने के लिये जनता का आह्वान करते समय कांग्रेस ने प्रजा के राज, जमींदारी उन्मूलन और राष्ट्रीयकरण के जितने वायदे किये थे, वे इस रामराज्य में झूठ साबित हो चुके हैं। उन वायदों के स्थान पर अब नये वायदे किये जा रहे हैं। इन वायदों पर भरोसा करने की अपेक्षा स्वतंत्रता के संघर्ष में कांग्रेस के गाँधीवादी कार्यक्रम और वर्तमान समय में कांग्रेस सरकार की नीति का विश्लेषण ही अधिक उपयोगी हो सकता है।

आज भी कांग्रेस सरकार अपने जनहित के कार्यक्रमों और अपने जनतांत्रात्मक रूप की डोंडी पीटने से थकती नहीं दिखाई देती बल्कि यही तो उसकी एकमात्र सम्पत्ति है। इस सरकार के जनहित और जनतंत्र में उतना ही सत्य है जितना कि इस सरकार द्वारा अपने सभी दफ्तरों, अदालतों और जेलों में अहिंसा के अवतार गाँधीजी के चित्र लटकाकर इन चित्रों के ही नीचे निरंकुश और निस्संकोच रूप से धाँधली और दमन करने में। कांग्रेस सरकार के रामराज्य के न्याय की धारणा के मूल साधनों की मालिक श्रेणी के अधिकार की रक्षा में है। औद्योगिक विकास की परम्परा में उत्पन्न हो जाने वाली कठिनाइयों और अन्तर्विरोधों को न्याय की यह धारणा दूर नहीं कर सकती।

शोषण से जनता की मुक्ति के प्रयत्नों का समाधान आज के इतिहास में सोवियत रूस और दूसरे समाजवादी देशों की नई सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था पेश कर रही है परन्तु कांग्रेसी सरकार इस बात के लिये प्रतिज्ञाबद्ध है कि वह इस देश की जनता को सोवियत रूस और दूसरे समाजवादी देशों के रास्ते पर नहीं जाने देगी। कांग्रेसी सरकार नित्य नये उपायों की खोज में रहती है। सोवियत और समाजवादी देशों के उदाहरण से यह बात मध्यान्ह सूर्य के प्रकाश की तरह स्पष्ट हो चुकी है। सोवियत और समाजवादी देशों के उदाहरण से यह बात मध्यान्ह सूर्य के प्रकाश की स्पष्ट हो चुकी है। कि किसी भी देश की दारिद्रय दूर करने देश के साधनों का शीघ्रतम विकास करने के लिये व्यक्तिगत साधन और प्रयत्नों की अपेक्षा समाज के स्वामित्व में सामूहिक प्रयत्न बहुत अधिक सफल हो सकते हैं। कांग्रेस सरकार के लिये इस सत्य से अधिक मूल्य साधनों के व्यक्तिगत अधिकार की प्रणाली की रक्षा का है। इसलिये अधिक उत्पादन के लिये राष्ट्रीयकरण की नीति की उपेक्षा न कर सकने पर भी वह पूँजीपति श्रेणी के मुनाफा कमा सकने के अधिकार की रक्षा प्राणपन से कर रही है।

राष्ट्रीयकरण की नीति के प्रति इस सरकार की यही आस्था है कि इस नीति को सफल बनाने का भार वह उन लोगों के कंधों पर दे रही है। जिन्हें राष्ट्रीयकरण की नीति में स्वयं विश्वास नहीं। सम्भवतः कांग्रेजी सरकार गाँधीवाद को सत्य प्रमाणित करने के लिये संसार को यह दिखाना चाहती है कि रामराज्य की व्यक्तिगत स्वामित्व की और स्वामी वर्ग द्वारा दास वर्ग पर दया कर उसका पालन करने की नीति, समाजवाद की अपेक्षा अधिक सत्य है। कांग्रेसी सरकार यदि राष्ट्रीयकरण की नीति की असफलता का उदाहरण संसार के सामने पेश करेगी तो यह उनकी अपनी ईमानदारी और योग्यता की ही कसौटी मानी जायेगी।

यशपाल


गाँधीवाद का प्रभाव और परिणाम



भारत की राष्ट्रीय सरकार के नेताओं का दावा है कि उन्होंने गाँधीवादी नीति के अधार पर देश को अहिंसात्मक क्रान्ति द्वारा विदेशी शासन से स्वतंत्र कर लिया है और भविष्य में भी वे गाँधीवादी नीति द्वारा ही देश की आर्थिक और राजनैतिक समस्याओं को हल करके देश की प्रजा को सुखी और समृद्ध बना देंगे।
आज भारत की प्रजा के सामने प्रश्न है:-कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने गाँधीवाद के सत्य और अहिंसा की नीति पर चल कर इस देश के लिये जो स्वतंत्रता प्राप्त की है उसे देश की जनता ने किस रूप में अनुभव किया है, जनता ने अपने जीवन में क्या सुविधायें और अधिकार पाये हैं और देश की प्रजा भविष्य में अपने लिये विकास और समृद्धि के कैसे अवसर की आशा कर सकती है ?

गाँधीवाद के सिद्धान्तों और उसके राजनैतिक परिणाम पर विचार करने के लिये सबसे पहले गाँधीवादी नेताओं के इस दावे की सच्चाई पर विचार करना आवश्यक है कि गाँधीवाद ने संसार में एक अभूतपूर्व चमत्कार करके भारत को अहिंसात्मक क्रान्ति द्वारा विदेशी शासन से स्वतंत्र करा लिया है। देश का शासन विदेशी सरकार के हाथ में चले जाने के परिणाम स्वरूप देश की जनता ने किस रूप में स्वतंत्रता अनुभव की है; प्रजा के क्या अधिकार और अवसर प्राप्त किये हैं, इन बातों पर विचार करने से बात लम्बी और गहरी हो जायेगी। राष्ट्रीय कांग्रेसी राज में प्रजा की स्वतंत्रता के रूप और वास्तविकता की छानबीन का प्रश्न अभी रहने दीजिये। हम ब्रिटिश सरकार द्वारा देश का शासन भारतीय सरकार को सौंप देने की ही बात को लें।

 इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकेगा कि कांग्रेस सरकार के हाथ में भारत का शासन आ जाना ब्रिटिश सरकार, भारतीय, कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं के बीच एक समझौते का परिणाम था। भारत के गाँधावादी नेताओं का दावा है कि ब्रिटिश सरकार को उनकी अहिंसात्मक शक्ति के आगे हार स्वीकार कर समझौते के रूप में कांग्रेस की न्यायोचित माँग को पूरी कर देना पड़ा। इस समझौते के वास्तविक कारणों और परिस्थितियों को जानने के लिये और यह समझने के लिये कि भारत की माँग का दमन अपनी सशस्त्र शक्ति से करते रहने वाले ब्रिटेन ने, गत महायुद्ध के बाद समझौते की नीति क्यों अपना ली, ब्रिटिश सरकार के उद्देश्य और दृष्टिकोण की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती।

 

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